भारतीय टीम के हेड कोच के तौर पर रवि शास्त्री का सफर खत्म हुए करीब एक महीने बीत चुका हैं। टी20 वर्ल्ड कप के साथ ही शास्त्री का हेड कोच के तौर पर कार्यकाल समाप्त हो गया था।
उनकी जगह राहुल द्रविड़ को भारतीय टीम का नया हेड कोच नियुक्त किया गया है। शास्त्री ने हेड कोच के पद से हटने के बाद कुछ अहम बातें बताई है।
उन्होंने बताया कि टीम सलेक्शन में उनकी कोई भूमिका नहीं होती थी। शास्त्री का कहना है कि अंबाती रायुडू या श्रेयस अय्यर में से किसी एक को नंबर-4 पर बल्लेबाजी करने के लिए टीम में शामिल करना चाहिए था।
टाइम्स ऑफ इंडिया को दिए इंटरव्यू में शास्त्री ने इस मुद्दे पर अपनी बात रखते हुए कहा, ‘टीम सलेक्शन में मेरा कोई रोल नहीं होता था। वर्ल्ड कप स्क्वॉड में जो तीन विकेटकीपरों को चुना गया था।
मैं मैनेजमेंट के इस फैसले से बिल्कुल भी खुश नहीं था। मेरा मानना है कि अंबाती रायुडू या फिर श्रेयस अय्यर को टीम में शामिल करना चाहिए था।
एक ही टीम में महेंद्र सिंह धोनी, ऋषभ पंत और दिनेश कार्तिक तीनों को चुने जाने का कोई लॉजिक नहीं बनता था, लेकिन मैंने सलेक्टर्स के काम में कभी टांग अड़ाना उचित नहीं समझा।
मैं सिर्फ तब बोलता था जब मेरी राय पूछी जाती थी।’ 2019 वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने सेमीफाइनल तक का सफर तय किया था, जहां वो न्यूजीलैंड के खिलाफ 18 रनों से हार गए।
अंबाती रायुडू को टीम में नहीं शामिल किए जाने को लेकर उस समय काफी विवाद खड़ा हो गया था। वर्ल्ड कप से पहले कप्तान विराट कोहली ने बोला था कि उनको नंबर-4 के बल्लेबाज के रूप में देख रहे है।
लेकिन जब टीम चुनी गयी तब रायुडू की जगह टीम में विजय शंकर को शामिल कर लिया गया था। उस समय के चीफ सलेक्टर एमएसके प्रसाद का कहना था कि बल्लेबाजी, फील्डिंग और गेंदबाजी तीनों डायमेंशन को देखकर उन्हें टीम में शामिल किया गया है।
जिसके बाद रायुडू ने ट्वीट करते हुए कहा था कि उन्होंने वर्ल्ड कप देखने के लिए 3डी ग्लास ऑर्डर कर दिए है।
वहीं भारतीय टीम के पपूर्व फील्डिंग कोच श्रीधर से जब पूछा गया कि क्या उनके पूर्व मुख्य कोच रवि शास्त्री और गेंदबाजी कोच भरत अरुण से मतभेद हो जाते थे।
उन्होंने बताया कि सर्वश्रेष्ठ नतीजे या फैसले के लिए मतभेद होना सही है। सात साल तक भारतीय टीम के फील्डिंग कोच रहे श्रीधर ने कहा, ‘मेरा मानना है कि सर्वश्रेष्ठ निष्कर्ष पर पहुंचने के लिए सभी कोच के बीच मतभेद होना चाहिए ये जरुरी है।
हमारे बीच हमेशा मतभेद होते रहते थे चाहे वह मैं, रवि भाई (शास्त्री), भरत सर, हो या पहले संजय (बांगड़) और फिर बाद में विक्रम (राठौड़) हो, लेकिन हम सभी एक ही लक्ष्य को हासिल करने के लिए काम करते थे।
इसमें कई बार दो लोग सहमत हो जाते थे और कई बार ऐसा नहीं हो पाता था। हम मुद्दे के अलग-अलग नजरियों पर बातचीत करने के बाद फैसला लेते थे।
यह भारतीय क्रिकेट के लिए सबसे सही रहता है। हमें ऐसा कभी महसूस नहीं हुआ कि हमारे विचारों को खारिज किया गया है।’